Ads Top

Mangala Gauri Vrat katha vidhi pooja method hindi fontvमंगला गौरी व्रत कथा

wallpaper status woman man male female mantra tantra story importance 

मंगला गौरी व्रत कथा
इस व्रत के विषय में कथा है कि एक सेठ का कोई पुत्र नहीं था। काफी प्रतीक्षा के बाद उसे एक संतान की प्राप्ति हुई, लेकिन उसकी आयु कम थी। सोलहवें वर्ष में सांप के काटने से उसकी मृत्यु होनी थी। संयोग से उसकी शादी एक ऐसी कन्या से हुई जिसकी मां मंगला गौरी का व्रत करती थी। इस व्रत के प्रभाव के कारण उत्पन्न कन्या के जीवन में वैधव्य का दुःख आ नहीं सकता था। इससे सेठ के पुत्र की अकाल मृत्यु टल गयी और वह दीर्घायु हो गया।

व्रत की विधि
इस व्रत की विधि के विषय में बताया गया है कि व्रत करने वाले को माता मंगला गौरी की प्रतिमा को सामने रखकर संकल्प करना चाहिए कि वह संतान, सौभाग्य और सुख की प्राप्ति के लिए मंगला गौरी का व्रत रख रही है।

व्रती को एक आटे का दीपक बनाकर उसमें सोलह बातियां जलानी चाहिए इसके बाद सोलह लड्डू,सोलह फल,सोलह पान,सोलह लवंग और ईलायची के साथ सुहाग की सामग्री माता के सामने रखकर उनकी पूजा करें। पूजा के बाद लड्डू सासु मां को दें और शेष सामग्री किसी ब्राह्मण को दें। अगले दिन मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी अथवा तालाब में विसर्जित कर दें।

पुरूष क्या करें
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस व्रत से मंगलिक योग का कुप्रभाव भी काम होता है। पुरूषों को इस दिन मंगलवार का व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए। इससे उनकी कुण्डली में मौजूद मंगल का अशुभ प्रभाव कम होता है और दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है।
_______________________________________________

मंगला गौरी विधि 
Mangla Gauri Mathod
मंगला गौरी उपवास रखने के लिये सुबह स्नान आदि कर व्रत का प्रारम्भ किया जाता हैं.
एक चौकी पर सफेद लाल कपडा बिछाना चाहियें.
सफेद कपडे पर चावल से नौ ग्रह बनाते है, तथा लाल कपडे पर षोडश माताएं गेंहूं से बनाते है.
चौकी के एक तरफ चावल और फूल रखकर गणेश जी की स्थापना की जाती है.
दूसरी और गेंहूं रख कर कलश स्थापित करते हैं.
कलश में जल रखते है.
आटे से चौमुखी दीपक बनाकर कपडे से बनी 16-16 तार कि चार बतियां जलाई जाती है.
सबसे पहले श्री गणेश जी का पूजन किया जाता है.
पूजन में श्री गणेश पर जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लोंग, पान,चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढाते हैं.
इसके पश्चात कलश का पूजन भी श्री गणेश जी की पूजा के समान ही किया जाता है.
फिर नौ ग्रहों तथा सोलह माताओं की पूजा की जाती है. चढाई गई सभी सामग्री ब्राह्माण को दे दी जाती है.
मंगला गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी व काजल लगाते है. श्रंगार की सोलह वस्तुओं से माता को सजाया जाता हैं.
सोलह प्रकार के फूल- पत्ते माला चढाते है, फिर मेवे, सुपारी, लौग, मेंहदी, शीशा, कंघी व चूडियां चढाते है.
अंत में मंगला गौरी व्रत की कथा सुनी जाती हैं.
कथा सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को सोलह लड्डु देती हैं. इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती हैं. अंतिम व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विर्सिजित कर दिया जाता हैं.

source: amarujala.com
source: astrobix.com
Powered by Blogger.